कहानी अमृत कुंभ की..
पृथ्वी पर चार पवित्र स्थानों पर लगने वाले कुंभ मेले में आने वाले साधु-संतों और तीर्थ यात्रियों न तो किसी निमंत्रण की दरकार होती है और न ही किसी सरकारी सुविधा की कोई आस होती है। वह अपनी गठरी-मुठरी उठाए चल पड़ता है कुंभ नगरी में पुण्य की डुबकी लगाने के लिए।
देश-दुनिया जिसे कुंभ मेला के नाम से जानती है, सही मायने में वह महापर्व है। अमृत की प्राप्ति का महापर्व। मोक्ष की कामना का महापर्व। कुंभ के साथ पर्व कहने पर ही इसका सही भाव प्रकट होता है। दरअसल, पर्व शब्द से काल का की विशिष्ट स्थिति का बोध होता है। काल को हमारे यहां परमात्मा की क्रिया शक्ति कहा गया है। काल के महत्व को समझते हुए ही हमारे यहां पर्वों अर्थात् विशेष काल का निर्धारण हुआ है।
कुंभ सत्य सनातन परंपरा का वह पर्व है, जिसमें लोग जाति, वर्ण, वर्ग, प्रांत और भाषा की दीवारें लांघकर जल और किरणों के पारावर में अपने आपको खुला छोड़ देते हैं। सही कहें तो एक खुले आसमान के नीचे आस्था के नाम पर इकट्ठा हुआ जनमानस पर्व के बहाने प्रकृति और अपनी परंपराओं से जुड़ता है।
कुंभ का इतिहास
कुंभ का अर्थ होता है घड़ा या कलश, जो हमारे यहां मांगलिक कार्यों का पर्याय और शुभत्व का प्रतीक माना जाता है। अमृत से भरे इसी कुंभ के मुख में भगवान विष्णु, कंठ में भगावन रुद्र और मूल में ब्रह्मा जी का निवास माना गया है। यह हमारी समस्त संस्कृतियों का संगम है। कुंभ में सभी देवी-देवता, तीर्थ समाहित हैं।
कुंभ पर्व की परंपरा सनातन काल से चली आ रही है। वेदों में कुंभ के बारे स्पष्ट वर्णन मिलता है।
जघानं वृत्रं स्वधितिर्वनेव रुरोज पूरो अरदन्न सिन्धून्।
विभेद गिरं नवमित्र कुम्भमा गा इन्द्रो अकृणुतस्व युग्भि:।। (ऋग्वेद, 10/89/7)
इस मंत्र के अनुसार इंद्र, सूर्य अथवा विद्युत मेघ को मारता ह। जिस प्रकार कुठार जंगलों को काटता है, उसी प्रकार वह मेघों की नगरियों को ध्वस्त करता है और नदियों को पानी से युक्त करता है और वह नये घड़े के समान मेघ का भेदन करता है। साथ ही अपने सहयोगी मरुतों के साथ वर्षा जप को अभिमुख करता है।
कुंभ पर्व के बारे में तीन कथाओं का वर्णन मिलता है। इसमें सबसे ज्यादा समुद्र मंथन की कथा प्रचलित है।
समुद्र मंथन की कथा
मान्यता है कि पौराणिक काल में एक बार देवताओं और दानवों ने हिमालय के समीप ‘क्षीरोद’ नामक एक सागर के मूल में ‘कूर्म’ ओर उसके ऊपर भगवान विष्णु की बाहु में मंदराचल पर्वत को रखकर मथना प्रारंभ किया। मथने के लिए विशेष रूप से वासुकि नाग की रस्सी बनाई गई। इस समुद्र मंथन से कुल 14 चीजें निकली थीं। सबसे पहले विष निकला। जिसे पीकर भगवान शिव नीलकंठ कहलाये। इसके बाद इसमें से पुष्पक विमान, ऐरावत हाथी, परिजात वृक्ष, रंभा, कौस्तुभ मणि, द्वितीया का चंद्रमा, कुण्डल, सारंग धनुष, कामधेनु गाय,उच्चैश्रवा अश्व, मां लक्ष्मी, विश्वकर्मा और धनवंतरि उत्पन्न हुए। महा विष्णु धनवंतरि के हाथों में अमृत कुंभ था, जो इंद्र को प्राप्त हुआ।
जिसे देवताओं के संकेत पाकर इंद्र के पुत्र जयंत लेकर चल पड़े। जिसकी भनक मिलते ही दैत्यों ने उनका पीछा करना शुरु किया और वे उसे लेकर 12 दिनों तक भागते रहे और कई बार इसे पाने को लेकर दोनों के बीच छीना-झपटी हुई। इसके बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर अमृत देवतओं को बांट दिया और दैत्य इससे वंचित रह गये। जयंत और दैत्यों के अमृत कुंभ की छीना झपटी में पृथ्वी के जिन चार स्थानों पर अमृत छलक गया था, आज वहीं पर कुंभ का पावन पर्व मनाया जाता है।
महर्षि दुर्वासा की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार इंद्र द्वारा ऋषि दुर्वाषा की दी हुई दिव्य माला का तब अपमान होता है, जब वे उसे ऐरावत हाथी के मस्तक पर रख देते हैं। इसके बाद ऐरावत हाथी उसे नीचे गिरा कर अपने पैरों से कुचल देता है। इस घटना का भान होते ही ऋषि दुर्वाषा इंद्र देव को श्राप देते हैं। जिसके बाद सारे संसार में हाहाकार मच जाता है।
इसके बाद प्रभु श्री नारायण की कृपा से माता लक्ष्मी का और अमृत का प्राकट्य होता है। अमृत पान से वंचित राक्षस अमृत कुंभ को नाग लोक में छिपा देते हैं, जहां से गरुण देव उसे निकाल कर
क्षीर सागर की ओर चल पड़ते हैं। गरुण देव क्षीर सागर पहुंचने से पहले रास्ते में जिन स्थानों पर अमृत कुंभ को रखते हैं, उसी पावन स्थानों पर आज कुंभ पर्व मनाया जाता है।
कद्रू – विनता की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रजापति कश्यप की कद्रू और विनता नाम की दो पत्नियां थीं। एक बार उन दोनों के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया कि सूर्य के अश्व काले हैं या सफेद? दोनों में तय हुआ कि जिसकी बात झूठी निकलेगी वह दूसरे की दासी बन जायेगी। कद्रू के पुत्र नागराज वासुकि थे और विनता के पुत्र वैनतेय गरुड़ थे। कद्रू ने अपने नागवंश को प्रेरित करके उनके कालेपन से सूर्य के अश्वों को ढंक दिया।
इस तरह विनता को हारकर दासत्व स्वीकार करना पड़ा। तब विनता के पुत्र ने गरुड़ ने कद्रू से उनका दासत्स खत्म करने को कहा। ऐसे में कद्रू ने कहा कि नागलोक से वासुकि नाग द्वारा रक्षित अमृत कुंभ लाने की शर्त रखी। इसके बाद गरुण अमृत कुंभ को प्राप्त कर जब वापस लौटने लगते हैं तो उन्हें रोकने के लिए इंद्र उन पर आक्रमण करते हैं। इस दौरान कुंभ से चार बार अमृत छलक जाता है। जिन स्थानों पर अमृत गिरता है, आज उन्हीं स्थानों पर कुंभ पर्व मनाए जाने की परंपरा है।