देश-दुनिया

कोविड की तरह ही अब पूरे विश्व को जल संकट के खिलाफ एकजुट होने की ज़रूरत- गजेंद्र सिंह शेखावत

  • शहरी नदी क्षेत्रों के प्रबंधन के लिए एनमसीजी और एनआईयूए ने विकसित किया पहला रणनीतिक ढांचा – हरदीप सिंह पूरी
  • अभी गंदगी फैलाओं और बाद में उसे साफ कर लेंगे वाले रवैये को हमें अब बदलना होगा-राजीव कुमार, उपाध्यक्ष, नीति आयोग

16 दिसंबर, नई दिल्ली: देश में जल सुरक्षा और प्राकृतिक जल निकायों के कायाकल्प पर चर्चा के लिए एनएमसीजी और सी-गंगा द्वारा आयोजित, 5वें भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलन के आखिरी दिन आज चर्चा का केंद्र बिंदु “नदी संरक्षण समन्वित नौपरिवहन और बाढ़ प्रबंधन” रहा। कार्यक्रम के दौरान विभिन्न संस्थानों से जुड़े विशेषज्ञओं ने नदी संरक्षण को लेकर शहरी और ग्रामीण विकास को एक साथ जोड़ने की रूपरेखा तैयार करने पर ज़ोर दिया। कार्यक्रम के बताया गया कि विकास नीतियों और कार्यक्रमों में ‘अर्थ गंगा’ को शामिल करके नदी संरक्षण को एक नई दिशा दी जा सकती है।

समापन सत्र में जल शक्ति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने 5वें भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलन के सफलतापूर्वक आयोजन के लिए एनएमसीजी और सी-गंगा को बधाई देते हुए इस शिखर सम्मेलन की तुलना ”वैचारिक कुंभ” से की। उन्होने कहा कि यह सम्मेलन जल क्षेत्र में निवेशकों और हितधारकों के बीच एक महत्वपूर्ण मंच साबित हुआ है। वहीं, इसके द्वारा आने वाले दिनों में भारत और अन्य देशों के बीच नदी प्रबंधन तथा जल क्षेत्र से संबंधी समस्याओं के समाधान एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। भारत को जल समृद्ध बनाना, जल स्रोतों को डेटा एकत्रित करने की दिशा में काम करना तय किया है। उन्होंने भूजल पर बात करते हुए कहा कि पूरे विश्व मे हम सबसे ज़्यादा भूजल उपयोग करते हैं। हम इसपर अपनी निर्भरता कम करने के लिए काम कर रहे हैं। हम विश्व बैंक के सहयोग से अटल भूजल योजना पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अटल भूजल प्रबंधन के लिए संस्थागत संरचना को सुदृढ़ करने तथा 7 राज्यों में टिकाऊ भूजल संसाधन प्रबंधन के लिए समुदाय स्तर पर व्यवहारगत बदलाव लाने के मुख्य उद्देश्य के साथ बनाई गई है। उन्होंने कहा यह योजना मांग पक्ष प्रबंधन पर मुख्य जोर के साथ पंचायत केन्द्रित भूजल प्रबंधन और व्यवहारगत बदलाव को बढ़ावा देगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि विश्व को जल क्षेत्र की चुनौतियों का सामना करने के लिए उसी तरह एक साथ आने की जरूरत है, जिस तरह कोविड-19 महामारी से लड़ाई में विश्व एकजुट हुआ। उन्होंने कहा, “हमने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों से बहुत कुछ सीखा है और यह हमारा वादा है कि हम इस सीख और अवधारणाओं को जल्द ही ज़मीन पर लाने का प्रयास करेंगे। क्योंकि आज हमारे पास राजनीतिक इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प के साथ-साथ अकादमिक और स्वयंसेवी संगठनों का भी पर्याप्त समर्थन और सहयोग मिल रहा है, जो पहले कभी नहीं हुआ। आने वाले दिनों में हम अपनी कार्यक्षमता को बढ़ाकर से तेजी से लक्ष्य हासिल करने की दिशा में बढ़ेंगे।

आवास एवं शहरी विकास मंत्री श्री हरदीप सिंह पुरी ने नमामि गंगे मिशन द्वारा किए जा रहे अभूतपूर्व कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि एनएमसीजी और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स ने गंगा नदी के बेसिन में शहरी नदी क्षेत्रों के प्रबंधन के लिए अपनी तरह का पहला रणनीतिक ढांचा विकसित किया है जिसे अर्बन रीवर मैनेजमेंट प्लान’ कहा जाता है। यह रूपरेखा नदी केंद्रित योजना की रूपरेखा है जिसे शहरों को प्रणालीगत दृष्टिकोण का प्रयोग करते हुए नदियों को अपने हिस्सों के भीतर प्रबंधित करने में मदद करने के लिए डिजाइन किया गया है।

नीति आयोग के वाइस चेयरमैन श्री राजीव कुमार ने पिछले चार भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलनों के परिणामों पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा “अभी गंदगी फैलाओं और बाद में उसे साफ कर लेंगे वाले रवैये को हमें अब बदलना होगा।” कार्यक्रम के दौरान बोलते हुये उन्होने कहा कि इस शिखर सम्मेलन में इस बार जल संरक्षण के के साथ-साथ कई अन्य ऐसे विषय थे, जिनपर खुलकर चर्चा की गई। उन्होंने बताया कि अब हमने उस धारणा को बदला है कि जल क्षेत्र में संरक्षण और विकास साथ-साथ नहीं हो सकते। आज हम दोनों ही विषयों पर एक जगह-एक साथ कार्य कर रहे हैं। हमने इन्हें एक दूसरे का पूरक बना दिया है। इसी का परिणाम है कि आज हमें इसके सकारात्म्क परिणाम मिल रहे हैं।

श्री विजय कुमार चौधरी, माननीय मंत्री, जल संसाधन विभाग, बिहार ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जल क्षेत्र में बिहार के सामने आ रही समस्याओं से अवगत कराया। उन्होने बताया कि उत्तर दिशा में नेपाल से बिहार आने वाली नदियां राज्य में बाढ़ का सबसे बड़ा कारण हैं। इसलिए बिहार की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए बाढ़ प्रबंधन हमारे लिए एक अत्यंत प्रासंगिक विषय है। उन्होंने बताया कि बिहार स्थानीय जल निकायों और अपशिष्ट जल प्रबंधन के संरक्षण पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है। उन्होंने सी-गंगा और एनएमसीजी को बिहार में बाढ़ प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने का अनुरोध किया।

जल शक्ति मंत्रालय के सचिव श्री यू.पी. सिंह ने बताया कि पिछले 4 शिखर सम्मेलनों में हमारा ध्यान सिर्फ गंगा की सफाई एवं कायाकल्प तक सीमित था। लेकिन “अब यह मिशन कहीं अधिक समग्र है, जिसमें न केवल प्रदूषण उन्मूलन शामिल है, बल्कि ई-प्रवाह, जैव-विविधता, सामुदायिक भागीदारी और छोटी नदियों का कायाकल्प भी शामिल है।” 

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक श्री राजीव रंजन मिश्रा ने मूल्यवान समय निकालकर शिखर सम्मेलन में आने और अपने ज्ञान को साझा करने के लिए सभी विशेषज्ञों और अतिथियों को धन्यवाद कहा। उन्होने कहा कि अपने आप में एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र होने के साथ ही भारत की सभी नदियों का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने कहा कि हमने इस शिखर सम्मेलन में जो कुछ भी सीखा है वह सभी नदियों के लिए समान रूप से लागू होगा और पूरे जल क्षेत्र के लिए लॉन्चिंग पैड के रूप में कार्य करेगा। उन्होने बताया कि शिखर सम्मेलन विभिन्न संगठनों और देशों के सहयोगात्मक प्रयासों का एक बड़ा उदाहरण है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के कार्यकारी निदेशक रोजी अग्रवाल ने गंगा संरक्षण के साथ-साथ नदी के किनारे ”अर्थ गंगा” मिशन के अंतर्गत चलाये जा रहे स्थायी कृषि, कृषिवानिकी और नौपरिवहन जैसे विभिन्न कार्यक्रमों पर विस्तार से बात की। सेंटर फॉर गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट एंड स्टडीज के प्रधान संस्थापक प्रो. विनोद तारे ने बताया की इस शिखर सम्मेलन ने यह आम धारणा तोड़ी है कि विकास और संरक्षण एक दूसरे के विरोधी हैं। उन्होने कहा कि सम्मेलन का सबसे बड़ा हासिल यह रहा कि विकास और संरक्षण के कार्य एक साथ-एक समय पर किए जा सकते हैं।

बताया गया कि इस शिखर सम्मेलन में दुनिया भर से 3000 से अधिक बुद्धिजीवी, शोधकर्ता, जल एवं पर्यावरण विशेषज्ञ और नीति निर्माता शामिल हुए। कार्यक्रम के अंतिम सत्र में सी-गंगा द्वारा विजन कान्ह- अ सस्टेनेबल  रेस्टोरेशन पाथवे, जोरारी-रिवाइवल एंड प्रोटेक्शन, हील्सा- बायोलॉजी एंड फिसरी ऑफ हिल्सा शैड इन गंगा रिवर बेसिन नाम से 3 रिपोर्टों को पेश किया गया। इसके अलावा, हाल ही में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ”गंगा उत्सव 2020” पर भी एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की गई।

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