Ganga Saptami 2021: कोरोनाकाल में इस मंत्र से करें गंगा पूजन और घर बैठे पाएं पुण्यफल
ऋग्वेद के मंत्र में जिन नदियों का नाम आया है, उसमें गंगा का नाम प्रथम है।
भारत में बहने वाली गंगा एक नदी नहीं बल्कि लोकमाता हैं। जिसके तट पर हर साल बगैर किसी निमंत्रण के लाखों-करोड़ों का जनसमूह इकट्ठा होता है। सनातन परंपरा में मां गंगा को सबसे पवित्र माना गया है। जिसके दिव्य जल के स्पर्श मात्र से ही प्राणि मात्र के मन के भौतिक विकास शुद्ध हो जाते हैं। सही कहें तो गति का दूसरा नाम गंगा है जो इंसान को सद्गति प्रदान करती हैं। यही कारण है कि लोग गंगा स्नान करते समय इस श्लोक को गुनगुनाते हैं —
”गंगेच चमुनेश्चैव, गोदावरी, सरस्वती
नर्मदे सिंधु कावेरी, जलेस्मिन सन्निधि कुरु।’‘
आध्यात्मिक दृष्टि से, भौतिक दृष्टि से या फिर रासायनिक दृष्टि से दुनिया की कोई भी नदी मां गंगा से समानता नहीं सकती है क्योंकि मां गंगा की गोद में जल नहीं बल्कि अमृत बहता है। यही कारण है कि कई दिनों तक रखने के बाद भी वह खराब नहीं होता है। हमेशा शुद्ध बना रहता है। गंगा का जुड़ाव हमारे साथ जन्म से लेकर मृत्यु तक बल्कि कहें कि उसके पूर्व और उसके बाद भी हमसे आपसे बना रहता है।
मां गंगा इस ब्रह्मांड में प्रवेश करने से पहले भगवान विष्णु के चरणकमलों को स्पर्श करती हैं, इसी लिए यह विष्णुपदी कहलाती हैं। भगवान विष्णु से मां गंगा से जुड़ाव को गीता के इस श्लोक से समझा जा सकता है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि —
पवन: पवतामास्मि राम:शस्त्रभृतामहम्।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी।।
अर्थात् शुद्धिकर्ताओं में मैं पवन हूं, योद्धाओं में मैं श्रीराम हूं, सरीसृपों में मैं मगर हूं और नदियों में मैं गंगा हूं।
राजा भागीरथ ने तपस्या करके उन्हें पृथ्वी पर लाया, इसलिए उन्हें भागीरथी भी कहा जाता है। मां गंगा को हम जाह्नवी, और कई नामों से भी जानते हैं। मां गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक सैकड़ों तीर्थ इसकी पावन धारा का स्पर्श पाकर अमृतमय होते हैं। मां गंगा की एक-एक लहर एक तीर्थ के समान है, जिसके दर्शन मात्र से ही मुक्ति मिल जाती है।
आनंद-मंगल और सुख-समृद्धि की देवी मां गंगा का गुणगान करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं —
गंग सकल मुद-मंगल मूला।
सब सुख करनि हरनि सब मूला।
मां गंगा को सनातन परंपरा से जुड़े सभी संप्रदाय पूजते हैं। भगवान शिव की जटाओं में निवास होने के कारण शैव लोग उन्हें अपने संप्रदाय की इष्ट देवी मानते हैं, तो वहीं भगवान विष्णु के पैरों के नाखून से संभूत होने वाली गंगा वैष्णव परंपरा के लिए अत्यंत पूजनीय हो गईं। शाक्त परंपरा के लिए तो गंगा से बड़ा कोई तीर्थ स्थान नहीं है क्योंकि वह तो उन्हें अनादि शक्ति के रूप में पूजता है।
शास्त्रों के अनुसार वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन ही मां गंगा की उत्पत्ति हुई थी। जिसे हम गंगा सप्तमी के पावन पर्व के रूप में मनाते हैं। आज के दिन मां गंगा में स्नान करने, उसके अमृतरूपी जल का आचमन करने और उनका समुमिरन करने मात्र से तमाम तरह के पापों का शमन हो जाता है। यदि कोरोना काल में आप गंगा तट पर नहीं जा सकते तो घर में रहते हुए मां गंगा का सुमिरन, पूजन और भजन कीजिए, निश्चित रूप से आपको मां गंगा की कृपा प्राप्त होगी।