Ganga Dussehra 2021: भारत में नदी नहीं लोकमाता हैं मां गंगा
स्वामी चिदानन्द सरस्वती, परमाध्यक्ष, परमार्थ निकेतन आश्रम, ऋषिकेश
‘गंगा दशहरा’ जीविकादायिनी, जीवनदायिनी एवं मोक्षदायिनी माँ गंगा का प्राकट्य उत्सव है। आज के पावन उत्सव पर यह चिंतन करना जरूरी है कि गंगा कैसी थी, गंगा कैसी हो गयी और माँ गंगा को कैसे रखना है। यह हम सब को सोचना होगा तथा इसके लिये समाज के सभी वर्गों को अपनी जिम्मेदारी समझनी और निभानी होगी। बच्चों से लेकर बड़ों तक महानगरों, नगरों, गांवों निकायों से लेकर नागरिकों तक, पूज्य संतों से लेकर संस्थाओं तक, समाज से लेकर सरकार तक हर एक की जिम्मेदारी, जवाबदेही और उत्तरदायित्व बनता है कि सभी अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर एक स्वच्छता सेतु का निर्माण करें। अपने टाइम, टैलेंट, टेक्नोलाॅजी एवं टेनासिटी के साथ, माँ गंगा के लिये हम सब को जुटना होगा, जुड़ना होगा और सब को जोड़ना होगा।
मां गंगा के प्रति हमारी जिम्मेदारी
माँ गंगा के बिना हम अधूरे हैं। हम सभी को गंगा जी की आवश्यकता है, इसलिये सभी को गंगा संरक्षण के लिये आगे बढ़ना होगा। जिस प्रकार गंगा जी किसी से भी कोई भेदभाव नहीं करती है-श्यामलाल हो या, सलीम मोहम्मद, सोहन सिंह हो या साइमन या कोई अन्य जो भी आये गंगा तट पर गंगा जी उसको अपना बना लेती हैं, अपना जल देती हैं, जीवन देती हैं, सभी के खेतों को सीचंती हैं, दिलों को आनन्दित करती हैं और जो मानते हैं उन्हें मुक्ति भी प्रदान करती हैं। अब हमें क्या करना है? हमें तो बस इतना ही करना है, जो गंदगी हम गंगा जी में डाल रहे हैं, उसे भूलकर भी न डालेेेेेेेेेेें। जिन कारणों से प्रदूषण बढ़े, उन चीजों का इस्तेमाल न करें। अपनी-अपनी जिम्मेदारी समझें। गंदगी और बंदगी, पूजा और प्रदूषण साथ-साथ नहीं चल सकता।
आखिर किस कल्चर से संवरेगा कल?
माँ गंगा ने हमें बहुत कुछ दिया है। 45 करोड़ लोगों को जीविका दी है, जीवन दिया हैं। गंगा जी के गंगत्व को बनाये रखने के लिये हमारी ग्रीन क्रिएटिविटी और ग्रीन रिस्पान्सबिलिटी बहुत जरूरी है। अब इसके लिये हमें अपनी जीवन शैली बदलना होगा। अब हमें ग्रीड कल्चर से ग्रीन कल्चर की ओर बढ़ना होगा, हमें ग्रीड कल्चर से नीड कल्चर और नीड कल्चर से नये कल्चर को अपनाना होगा। यूज एंड थ्रो कल्चर से यूज एंड ग्रो कल्चर को स्वीकार करना होगा। सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल बंद करना होगा।
नदियाँ धरती की जलवाहिकाएं हैं
जिस प्रकार मानव शरीर रूधिर वाहिकाओं के बिना जिन्दा नहीं रह सकता, उसी प्रकार जल वाहिकाओं के बिना धरती पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारत सहित विश्व की अनेक संस्कृतियों की जननी हमारी नदियां ही हैं। ऋग्वेद में सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता हैै। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को अपार जल राशि से युक्त सदानीरा कहा गया है और आज हम सरस्वती नदी के बारे में केवल कथाओं में ही सुनते हैं। ऐसे ही हड़प्पा सभ्यता के लगभग 1000 से अधिक पुरातात्त्विक केंद्र आधुनिक घघ्घर नदी के सूखे हुए किनारों पर पाए गए हैं। ऐसे अनेक प्रमाण हैं कि नदियों के तटों पर विश्व की अनेक संस्कृतियों का उद्भव हुआ है।
नदी नहीं बल्कि मां हैं गंगा
वर्तमान समय में भी देखें तो उत्तराखंड सहित गंगा के तटों पर स्थित भारत के पांच राज्यों में पर्यटन का मुख्य केन्द्र गंगा और अन्य सदानीरा नदियां ही हैं, जो हिमालय की गोद से निकलती हैं। भारत का पर्यटन केवल मनोरंजन का केन्द्र नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिकता, योग, ध्यान और दिव्यता से युक्त है। उत्तराखंड तो धरती पर स्वयं स्वर्ग के समान है। यहां हरियाली और स्वच्छ जल का अपार भण्डार है। साथ ही नदियों के तटों पर लगने वाले तीर्थ और मेले आस्था के साथ समाज को नई दिशा देते हैं। यहां से सभी एक नई चेतना लेकर जाते हैं। अगर नदियां नहीं होंगी, तो न मेेले होंगे न कुम्भ होगा, न पूजा होगी, न विसर्जन होंगे। एक बात हमें हमेशा याद रहे कि गंगा केवल एक नदी नहीं बल्कि माँ हैं।
भारतीय संस्कृति की पहचान हैं मां गंगा
माँ गंगा का जल ‘अद्वितीय गुणों’ से युक्त है, वह केवल पानी का एक स्रोत मात्र नहीं है बल्कि गंगा जी को भारतीय सभ्यता के अभिन्न अंग के रूप में प्रतिष्ठित किया गया हैं। भारत की पहचान है गंगा। गंगा जल में भारत का प्राचीन इतिहास, संस्कृति, सभ्यता और वर्तमान की गाथा समाहित है। गंगा न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए आस्था और आध्यात्मिकता का केन्द्र रही है।
भारत के लिए वरदान हैं मां गंगा
भारत के लिये माँ गंगा किसी वरदान से कम नहीं है। राजा भगीरथ की घोर तपस्या के कारण करूणावश राजा सगर के साठ हजार पुत्रों के उद्धार के लिये माँ गंगा का स्वर्ग से धरती पर अवतरण हुआ था। तब से लेकर आज तक गंगा करोड़ों-करोड़ों लोगों को शान्ति, मुक्ति और आनन्द प्रदान कर रही हैं। माँ गंगा का दर्शन, स्पर्श, पूजन और स्नान से ही मानव मात्र की आध्यात्मिक उन्नति होती है। गंगा जी उत्तराखण्ड से निकली एक पवित्र नदी है, परन्तु भारत जैसे आध्यात्मिक राष्ट्र में उसेे माँ का स्थान दिया है। गंगा सदियों से करोड़ों लोगों की आस्था और वेद मंत्रों का संगीत अपने जल में समाहित कर गंगोत्री से गंगा सागर तक श्रद्धालुओं को मुक्ति और शान्ति प्रदान करती आ रही हैं।
जल नहीं बल्कि जीवन है मां गंगा
गंगा न केवल आस्था बल्कि आजीविका का भी स्रोत है। नदियां केवल जल का ही नहीं बल्कि जीवन का भी स्रोत होती हैं। नदियां संस्कृति की संरक्षक हैं और संवाहक भी। नदियों ने मनुष्य को जन्म तो नहीं दिया परन्तु जीवन तो दिया हैं। नदियां तो पूरे विश्व में हैं परन्तु माँ गंगा केवल भारत में ही हैं। किसी भी राष्ट्र को उन्नत, समृद्ध, श्रेष्ठ और समुन्नत बनाने के लिये वहां की संस्कृति, सभ्यता एवं नदियों का अमूल्य योगदान होता है। इतिहास उठाकर देखें तो विश्व की लगभग सभी महान संस्कृतियों का उद्भव नदियों के तटों पर हुआ है। नदियों ने अपने जल प्रवाह में अनेक युगों की दास्तान को सहेज कर रखा है।
दु:खों को दूर करती हैं मां गंगा
गंगा माँ करोड़ों की आस्था, दुःख, दर्द, प्रार्थना और कामनाओं को लेकर कलकल करती अथाह जल राशि लिये गंगा सागर में समाहित हो जाती है। न जाने कितना जप, तप, वेद मंत्रों का गायन पूजा और प्रार्थना गंगा जी के तटों पर हुआ होगा और न जाने कितने साधक यहां से मानसिक शान्ति लेकर लौटे होंगे। गंगा जी के जल में बैक्टीरियोफेज तो होता ही है साथ ही सदियों से जपे गये मंत्रों और प्रार्थना की जो शक्ति है, वह कम अद्भुत नहीं है। माँ गंगा के दर्शन मात्र से ही मन को शान्ति मिलती है। विश्व की यह पहली नदी है जिसके तटों पर अस्त होते सूर्य के साथ ‘‘जय गंगे माता’’ का स्वर गूंजने लगता है।
शक्ति और भक्ति का प्रवाह है मां गंगा
भारत की पहचान माँ गंगा से है। भारत की राष्ट्रीय नदी गंगा युगोेें युगों से मानवीय चेतना का संचार कर रही है। वेदों की ऋचाओं में है गंगा; साहित्यकारों के साहित्य में है गंगा, कवियों की कविताओं में; भक्तों के भाव में प्रवाहित है माँ गंगा और तीनों छन्दों में समाहित है गंगा, ऋषियों की तपस्या में भी गंगा। साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरूदण्ड और भारतीय अध्यात्म का सार भी गंगा जी ही हैं। माँ गंगा के बारे में जितना कहा और लिखा जाये वह उतना ही कम है। गंगा को कोई भी शब्दों में नहीं बांध पाया।
गंगे तव दर्शनात् मुक्तिः
आदिकाल से ही गंगा पर्वतों, घाटियों और मैदानों को पार करते हुये लोगों के दिलों तक पहुंची है। विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक भारत की सभ्यता का समृद्ध इतिहास गंगा में समाहित है। भारत की सांस्कृतिक विविधता में एकता और सांस्कृतिक धरोहर को गंगा के तटों पर देखा जा सकता है। गंगा, सबके लिये पूजनीय और पवित्र है। आज भी हर भारतवासी के दिल में बसती है गंगा। गंगा में एक डुुुुुुबकी और एक घूंट आचमन करने से ही मुख से अनायास ही उच्चरित होने लगता है गंगे तव दर्शनात् मुक्तिः। कहीं किसी और नदी में या घर में भी स्नान करते हैं तो सबका मन गा उठता है-‘‘गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे, सिन्धु, कावेरी जलेऽस्मिन सन्निधिं कुरु।।” भारत को एकता के सूत्र में बाँधेेेेेेे रखने का श्रेय भी गंगा जी को ही जाता है, इसलिये आईये सब मिलकर माँ गंगा के प्राकट्य दिवस पर आज गंगा जी को स्वच्छ एवं निर्मल बनाये रखने का संकल्प लें।