नदियाँ भारतीय संस्कृति और पर्यटन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं: प्रहलाद पटेल
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने जल संरक्षण की बढ़ती आवश्यकता पर दिया ज़ोर
12 दिसंबर 2020, नई दिल्ली: पर्यटन का नदियों के साथ बहुत ही गहरा संबंध है। इसलिए लोगों को साथ जोड़कर उनके कायाकल्प में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है। प्राचीन काल से ही भारत आने वाले यात्री हमेशा यहाँ की नदियों विशेषकर गंगा की ओर आकर्षित होते थे। उनमें से कई विदेशी आगंतुकों ने अपने यात्रा वृतांतों में गंगा नदी के प्रति आम जनमानस की आस्था, श्रद्धा, गौरव और उनकी गहरी भावना के बारे में विस्तृत वर्णन किया है। आज इसी क्रम में, 5वें भारत जल प्रभाव शिखर सम्मलेन के तीसरे दिन का मुख्य विषय “नदी संरक्षण समन्वित ऊर्जा और पर्यटन” रहा।
केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), श्री प्रहलाद सिंह पटेल ने नदियों की संस्कृति, पर्यटन क्षमता और ऊर्जा प्रबंधन पर बात करते हुए कहा कि नदियों में न केवल भौतिक ऊर्जा होती है बल्कि बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रबल स्रोत होते हैं। उन्होंने कहा कि आज के समय सभी मनुष्य शांति की तलाश में हैं, और उन्हें यह शान्ति इन दिव्य नदियों के किनारे ही प्राप्त हो सकती है। श्री पटेल ने कानपुर में एशिया के सबसे बड़े सीवेज को बंद करने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की भी प्रशंसा की। वर्ष 2019 में हुए कुंभ पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय में कुंभ को लेकर लोगों की धारणाओं में बहुत सकारात्मक बदलाव आया है। दुनिया अब इसे सबसे बड़े और सबसे जीवंत समूह के रूप में मानते हुए प्रशंसा करती है। उन्होंने कहा कि नदियों का जीवित अस्तित्व हैं और हमें इन्हें नहरों में नहीं बदलने देना चाहिए।
माँ गंगा और जल संरक्षण के विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, माननीय मुख्यमंत्री, उत्तराखंड ने कहा, “हर घर तक पीने का पानी और शौचालय की सुविधा पहुंचाने की सरकार की पहल से आज पानी की जरूरत कई गुना बढ़ गई है। इसलिए, जल संरक्षण अब और अधिक महत्वपूर्ण है।” उन्होंने बताया कि नमामि गंगे मिशन के तहत उत्तराखंड में गंगा नदी से जुड़ी सभी परियोजनाएं पूरी की जा चुकी हैं और राज्य सरकार ने लगभग 3 मिलियन जल संरक्षण संरचनाओं का विकास किया है और 50,103 लाख लीटर की भंडारण क्षमता का निर्माण किया है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि गंगा कई नदियों की एक प्रणाली है और वह उन सभी की संस्कृति को एक साथ लेकर चल रही है। गंगा संस्कृति वास्तव में भारतीय संस्कृति है। कार्यक्रम में एसपीएमजी उत्तराखंड के परियोजना निदेशक श्री उदय राज सिंह भी उपस्थित थे।
ऊर्जा और पर्यटन के बीच संतुलन बनाने की चुनौतियों के बारे में बताते हुए श्री अजय माथुर, महानिदेशक, TERI ने कहा, “हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट्स के कारण कई समस्याओं जैसे कि नदियों के सूख जाने, मत्स्य पालन के प्रभावित होने का सामना करना पड़ता है। जिसके चलते नदियों पर आधारित पर्यटन क्षेत्र आज काफी प्रभावित हो रहा है। इस समस्या के उपाय के लिए ज्यादातर प्रोजेक्ट मास्टर प्लान में इन पहलुओं पर विचार कर रहे हैं।” उन्होंने देश में आध्यात्मिक स्थलों को ऊंचाई वाली जगहों पर बनाने के साथ ही देश के सभी बांधों की मरम्मत पर जोर दिया। उन्होंने हाइड्रो-इलेक्ट्रिक परियोजनाओं के डिजाइन पर विचार करने और पर्यावरण पर प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से बताया।
नमामि गंगे मिशन गंगा बेसिन में ‘अर्थ गंगा’ परियोजना के अंतर्गत पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में तेजी से कार्य कर रहा है। मिशन के कार्यों पर बात करते हुए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक श्री राजीव रंजन मिश्र ने बताया कि मिशन के अंतर्गत गंगा यात्रा जैसे अभियानों का आयोजन, डॉल्फिन सफरियों की शुरुआत की गई है, और अब गौमुख से गंगासागर तक गंगा नदी की सांस्कृतिक विरासत के प्रलेखन की दिशा में कार्य किया जा रहा है। जिसमें गंगा नदी बेसिन में लगभग 48 जिलों में प्राकृतिक विरासत, वास्तुकला विरासत और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की मैपिंग शामिल है। श्री मिश्र ने विभिन्न परियोजनाओं में ई-प्रवाह के कार्यान्वयन के बारे में विस्तृत जानकारी दी। कार्यक्रम के दौरान एनएमसीजी के कार्यकारी निदेशक भी उपस्थित रहे। वोट ऑफ़ थैंक्स में एनजीजीजी के कार्यकारी निदेशक, श्री रोज़ी अग्रवाल ने कहा कि शिखर सम्मेलन में अब तक के प्रख्यात वक्ताओं ने अपने ज्ञान और अनुभवों को साझा किया है और अगले दो दिनों के लिए कई और पंक्तिबद्ध हैं।
आपको बता दें कि इस वर्ष 10 दिसंबर से 15 दिसंबर तक आयोजित किये जा रहे 5वें भारत जल प्रभाव शिखर सम्मलेन की थीम ‘अर्थ गंगा’ है। जिसे राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और सेंटर फॉर गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट एंड स्टडीज मिलकर आयोजित कर रहे हैं। चूँकि कार्यक्रम की थीम “अर्थ गंगा” है इसलिए इस बार राष्ट्रीय नदी गंगा से संबंधित आर्थिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही नदी क्षेत्र में रोज़गार के अवसर को बढ़ाने पर विस्तृत चर्चा सत्र का आयोजन किया जा रहा है।