उदासीन का शाब्दिक अर्थ है उत् + आसीन = उत् ऊँचा उठा हुआ। अर्थात् ब्रह्म में आसीन = स्थित, समाधिस्थ। कुल मिलाकर जो सांसारिक विषय वासनाओं से रहित होकर हमेशा ब्रह्म के ध्यान में मगन रहता है, त्याग एवं तपस्या से युक्त होकर जीवनयापन करता है और ब्रह्मनिष्ठ है, वह उदासीन है।
उदासीन संप्रदाय का यों तो प्रवर्तन सनत्कुमार जी से माना जाता है लेकिन मध्यकाल में सरस्वती की धारा के समान क्षीण होती हुई उदासीन परंपरा को श्री अविनाशी मुनि ने पुर्नजीवन दिया तथा भगवान आचार्य श्री श्रीचंद्र ने उसे अखंडता प्रदान की। श्री गुरु अविनाशी मुनि उदासीन संप्रदाय के 164वें आचार्य थे। इस क्रम में आचार्य श्रीचंद्र 165वें आचार्य हुए।
श्रीचंद्र जी का प्रादुर्भाव 1494 ई. को तथा तिरोधान 1644 ई. में हुआ था। आचार्य श्रीचंद्र जी को ही अंतिम आचार्य मानकर इस अखाड़े से आचार्य की परंपरा समाप्त कर दी गई है। यही कारण है कि उनके बाद इस संप्रदाय में कोई भी संत आचार्य पद नहीं प्राप्त कर सका। श्री चंद्र जी ने वेदों का भाष्य किया। महामंडलेश्वर स्वामी गंगेश्वरानंद जी ने उनके भाष्य के अंश विभिन्न जगह पर प्रकाशित कराये।
श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन की स्थापना श्री निवार्ण प्रियतमदास जी महाराज ने 1825 विक्रम संवत के हरिद्वार कुंभ मेले में की थी। इस अखाड़े में आचार्य महामंडलेश्वर का पद नहीं है। इसमें एक श्रीमहंत और तीन मुखिया महंत होते हैं। वर्तमान में इस पद पर श्रीमहंत महेश्वरदास जी हैं। इनके अलावा महंत श्री रघुमनी जी, महंत श्री दुर्गादास जी और महंत श्री संतोष मुनि जी हैं। इसी तरह इस अखाड़े में एक प्रधान सचिव, एक सहायक सचिव, एक पुजारी तथा शाखाओं की क्षमतानुसार स्थानीय महंत होते हैं।
श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन का भस्मी का गोला (शंभु) गोल और कुछ चपटे आकार का होता है। इस अखाड़े की इष्ट लक्ष्मी हैं तथा इस अखाड़े में पंचमहादेव की उपासना की जाती है। श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन का प्रधान कार्यालय प्रयागराज में है। जबकि इसकी शाखाएं देश के विभिन्न क्षेत्रों में फैली हैं।
श्रीमहंत महेश्वरदास जी महाराज —
आप अलमस्त साहेब पद्धति के महंत हैं। आपका गुरुस्थान तिलहर उदासीन आश्रम शाहजहांपुर, उ.प्र. है। आप बहुत ही सरल, सहज, वात्सल्यपूर्ण हृदय से युक्त अत्यंत धीर-गंभीर विद्वान संत हैं।
महंत श्री रघुमनी जी महाराज —
आप बालूहसना साहेब पद्धति के महंत हैं। आपका गुरुस्थान विष्णुपुर बांकुड़ा उदासीन आश्रम पश्चिम बंगाल है। आप अत्यंत मिलनसार, प्रसन्नचित, संतत्व के धनी और उच्च व्यक्तित्व वाले कर्तव्यनिष्ठ संत हैं।
महंत श्री दुर्गादास जी महाराज —
आप मींहा साहेब पद्धति के महंत हैं। आप का गुरुस्थान जमालपुर योगमाया बड़ी दुर्गा उदासीन आश्रम बिहार है। आप बहुत ही विनम्र स्वभाव एवं कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति वाले संत हैं।
महंत श्री अद्वैतानन्द जी महाराज —
आप भगत भगवान साहेब पद्धति के महन्त हैं| आप का गुरु स्थान श्री गुरु कार्ष्णि उदासीन आश्रम रमणरेती धाम महावन (पुराणी गोकुल) मथुरा उत्तर प्रदेश है। आप गंभीर चिंतन शील पुराणों के मर्मज्ञ हैं| आप प्राचीन परम्पराओ में पूर्ण निष्ठा एवं उन्हें अक्षुण्ण रखने में विश्वास रखते हैं।
अखाड़े के उद्देश्य
— श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन प्रमुख उद्देश्यों में से एक संस्कृत शिक्षा का प्रचार-प्रसार एवं औषधालयों की स्थापना करना है।
— अखाड़ा देश के प्रमुख तीर्थ स्थानों एव कुंभ महापर्व के मौके पर तीर्थयात्रियों के लिए नि:शुल्क अन्न एवं आवास की व्यवस्था करते हुए धर्म का प्रचार-प्रसार करता है।
— यह अखाड़ा समय-समय पर सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं को आर्थिक सहयोग भी करता है।
— दैवीय आपदा एवं राष्ट्रीय संकट की घड़ी में यह अखाड़ा देश की एकता, अखंडता की रक्षा के लिए हमेशा से बढ़-चढ़कर आर्थिक योगदान करता है।
— उदासीन संप्रदाय के भक्ति-ज्ञान समुच्चय सिद्धांत का प्रचार तथा राष्ट्र में नैतिक भावनाओं का संचार करना अखाड़ा का प्रमुख उद्देश्य है।