देश मेें हर 12 साल में लगने वाला कुंभ महापर्व हरिद्वार में मनाया जा रहा है। ज्योतिषीय गणना के चलते आस्था का यह महापर्व एक साल पहले यानि ग्यारहवें साल में मनाया जा रहा है। कुंभ मेला पर होने वाले साधु-संतों और नागाओं का पहला शाही स्नान महाशिवरात्रि के अवसर पर 11 मार्च 2021 को होगा। जिसमें सन्यासियों के कुल सात अखाड़े भाग लेंगे।
कुंभ की शान माने वाले ये अखाड़े महाशिवरात्रि के दिन हरिद्वार की हर की पैड़ी पर अपने देवताओं समेत पूरे दल-बल के साथ स्नान करने पहुंचेगे। शाही स्नान के लिए निकलने वाली इन अखाड़ों की शोभा यात्रा देखने लायक होती है। हर-हर महादेव के नारों के बीच गूंजती हुई जब संतों की शाही सवारी निकलती है तो उनकी दिव्यता और भव्यता देखते बनती है।
अखाड़ों से जुड़े साधु संत, आचार्य महामंडलेश्वर, महंत आदि सोने-चांदी की पालकी और घोड़े, हाथी, उंट आदि पर सवार होकर पेशवाई के लिए निकलते हैं। ऐसे में एक निश्चित घड़ी में पुण्य की डुबकी लगाने और पूज्य संतों के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु हरिद्वार पहुंच रहे हैं। हालांकि हरिद्वार कुंभ में शाही स्नान के समय पर किसी को वीआईपी इंट्री नहीं मिलेगी।
ऐसे शुरु हुई शाही स्नान की परंपरा
मान्यता है कि कुंभ मेले में पूज्य संतों के शाही स्नान की परंपरा मुगल काल में प्रारंभ हुई। मान्यता है कि उस समय जब मुगल भारत में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रहे थे तो उस वक्त दोनों धर्मों के बीच अक्सर संघर्ष हुआ करते थे। इसके बाद दोनों के बीच समझौता हुआ कि दोनों एक दूसरे के धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में दखल नहीं देंगे। ऐसे में आस्था के महापर्व को राजसी ठाठ-बाट से निकालने के लिए में संतों की शोभा यात्रा को राजा-महाराजाओं की तरह निकालने का प्रचलन शुरु हुआ।